
भारत में Micro, Small and Medium Enterprises (MSME) देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। रोज़ करोड़ों लोगों को रोजगार देते हैं, निर्यात से लेकर घरेलू बाजार तक की ज़रूरतें पूरी करते हैं। लेकिन अब एक नई समस्या सामने आ गई है — Bureau of Indian Standards (BIS) द्वारा जारी Quality Control Orders (QCOs)। पिछले तीन वर्षों में BIS ने कुल 187 QCOs जारी किए हैं, जिनमें से लगभग 84 QCOs (लगभग 45%) ऐसे हैं जिनका MSME से जुड़ाव है।
ये QCOs वो कानूनी आदेश होते हैं जो घरेलू और आयातित उत्पादों को BIS द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों का पालन करना अनिवार्य बनाते हैं। बिना प्रमाणन के वो उत्पाद बेचे नहीं जा सकते। लेकिन MSMEs का आरोप है कि इन QCOs ने उन्हें “non-tariff barriers” दी हैं — अर्थात़ ऐसी बाधाएँ जो व्यापार को प्रभावित करती हैं, लागत बढ़ाती हैं और कभी-कभी उनके विकास के रास्ते में रुकावट बन जाती हैं।
QCOs: आंकड़े और तथ्य
- 84 QCOs MSMEs से जुड़े, 343 उत्पादों को कवर करते हैं। यानी कि कुल 187 QCOs में से लगभक आधे।
- सबसे ज़्यादा QCOs आये हैं Department for Promotion of Industry & Internal Trade (DPIIT) की सिफ़ारिश पर — कुल 86 QCOs जो 362 उत्पादों पर लागू हैं। इसके बाद Chemicals & Petrochemicals विभाग और Ministry of Textiles की संख्या है।
- साल दर साल बदलाव देखने को मिला है:
- 2022-23 में कुल 10 QCOs जारी हुए।
- 2023-24 में यह बढ़कर 59 QCOs हो गये।
- 2024-25 में फिर घटकर 15 हो गए।
- इस वित्त वर्ष में अब तक केवल 4 QCOs जारी हुए हैं।
- ये QCOs जूट बैग्स, पानी की बोतलें, हेलमेट, मेडिकल टेक्सटाइल्स, एग्रो टेक्सटाइल्स, फर्नीचर, गैस स्टोव, सीलिंग फैन, प्राइमरी लीड, सोलर थर्मल सिस्टम और स्टेनलेस स्टील पाइप्स-ट्यूब्स जैसे उत्पादों को कवर करते हैं।
MSMEs की आपत्तियाँ और चुनौतियाँ
MSMEs के प्रतिनिधियों ने सरकार से कहा है कि ये QCOs उनकी उत्पादन लागत में भारी वृद्धि का कारण बन रहे हैं। विशेष रूप से इन बातों पर जोर दिया गया है:
- इनपुट लागत बढ़ना
MSMEs अक्सर सस्ती इनपुट्स आयात करते हैं या छोटे पैमाने पर उत्पाद बनाते हैं। जब उन इनपुट्स पर QCO लागू हो जाता है और उनमे BIS-प्रमाणन (certification) माँगा जाता है, तो लागत बढ़ जाती है। - न TARIFF BARRIERS जैसा असर
ये QCOs ऐसा लगते हैं जैसे कांस्टम टैक्स या आयात शुल्क की तरह ही हैं — गुणवत्ता मानक के नाम पर बाधाएं। MSMEs का कहना है कि उन्हें समय, संसाधन और पैसा प्रमाणन के लिए लगाना पड़ता है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कम होती है। - प्रक्रिया में देरी और जटिलताएँ
QCO तैयार करते समय विभागों और BIS में stakeholder consultation की जाती है, लेकिन प्रक्रिया लंबी हो जाती है। WTO के Technical Barrier to Trade (TBT) पोर्टल पर ड्राफ्ट QCOs शेयर करना पड़ता है, और उसके बाद लागू किया जाता है। इस बीच MSMEs को तैयार होने में दिक्कत होती है। - मांग-ओ-डिमांड असमंजस
बहुतसे उत्पादों पर हमेशा आवश्यकता नहीं होती कि QCO immediately लागू हो — लेकिन अचानक आदेश जारी हो जाना MSMEs को कठिन स्थिति में डालता है।
सरकार और नीति प्रतिक्रिया
- NITI Aayog के सदस्यों ने कहा है कि ये QCOs “malign interventions” बन गये हैं — अर्थात़ ऐसी हस्तक्षेप जो व्यवसायों के लिए हानिकारक हो रहे हैं।
- एक High-Level Committee बनी है, जिसका नेतृत्व Rajiv Gauba कर रहे हैं, जो Non-Financial Regulatory Reforms से जुड़ी है। इस समिति ने इस पूरे मामले पर चर्चा की कि कैसे certification प्रक्रिया ज़्यादा सहज बनाई जाए।
- सरकार के विभागों को सलाह दी जा रही है कि QCOs लागू करने से पहले MSMEs की राय पूरी तरह ले और उद्योग सम्बंधित खर्च-बढ़ोतरी के प्रभाव की गणना करें।
✔️ संभावित समाधान और सुझाव
MSMEs की समस्याएँ समाना करने के लिए कुछ सुझाव हैं जिन पर अमल किया जा सकता है:
- Certification शुल्क कम करना
BIS प्रमाणन लागत को सरल और सस्ती बनाया जाना चाहिए, विशेष रूप से छोटे उद्यमों के लिए, ताकि उन पर बोझ न पड़े। - Transition अवधि देना
जब कोई नया QCO जारी हो, तो MSMEs को पर्याप्त समय दिया जाए कि वे मानकों के अनुरूप तैयार हों। - प्रशिक्षण और सहायता योजनाएँ
सरकार को प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने चाहिए ताकि MSMEs को यह समझने में मदद मिले कि BIS मानक कैसे पूरा किया जाए, कौन से उपकरण चाहिए, प्रक्रिया क्या है। - सरल प्रक्रिया और त्वरित प्रमाणन
दस्तावेज़ीकरण, निरीक्षण, टेस्टिंग आदि प्रक्रियाओं को डिजिटल टूल्स पर आधारित सरल, त्वरित और पारदर्शी बनाया जाए। - परामर्श-समूहों की भूमिका बढ़ाई जाए
MSMEs, उद्योग संघों और BIS के बीच नियमित संवाद सुनिश्चित हो ताकि QCOs बनाने में उद्योग की राय शामिल हो सके।
✅ निष्कर्ष
Quality Control Orders (QCOs) का मकसद सही है — उपभोक्ता सुरक्षा, गुणवत्ता सुनिश्चित करना और substandard आयातों को रोकना। लेकिन जब ये आदेश इस तरह से लागू हों कि MSMEs की लागत, प्रतिस्पर्धात्मकता और अस्तित्व पर असर पड़े, तो यह एक बड़ा विषय बन जाता है।
पिछले तीन वर्षों में लगभग 45% QCOs MSMEs-से जुड़े हुए हैं, 343 तरह के उत्पादों पर लागू। यह संख्या बताती है कि इस नीति-दिशा को पुनः देखा जाना चाहिए — उद्योग की तैयारी, लागत और पारदर्शी प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए। यदि सरकार MSMEs के सुझावों को सुनती है, तो QCOs एक ऐसी शक्ति बन सकती है जो देश की उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता दोनों को ही ऊँचाई पर ले जाए।
यह समय है कि नीति निर्माता यह सुनिश्चित करें कि एक तरफ़ गुणवत्ता बनी रहे, दूसरी तरफ़ MSMEs समृद्ध हों — क्योंकि विकास तभी सार्थक है जब उसका लाभ छोटे और मझोले उद्योगों तक पहुंचे।
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